ALFAZ-e-ISHQ....

THIS IS D ONE I WROTE FOR SUMBDY WHO LIVES SUMWHERE IN MY HEART...THE WORDS OF LOVE...

अल्फाज़-ऐ-इश्क तेरे ओंठो को छू कर जो निकले
तेरे साँसों की गर्मी से ये पत्थर भी पिघले
जब भीड़ में भी तन्हाई का एहसास होने लगे
तब फासले का गम होके नम चेहरे भिगोने लगे
इन महफिलों मै ये आखें उन्हें ढूँढती फिरे
और जब दिखें वो सामने ये पलकें जा गिरें
हर लव्ज़ तेरे दिल पे मेरे करते खलबली
तेरी अदा झूमती लता मुस्कान खिलती कली
छुई हथेली जान ले ली के दिल रहा न मेरा
तेरे लिए ओ अज़ीज़ क्या देहलीज़ क्या पेहरा
के माफ़ करना गर खता कोई हुई हमसे
मैं बिरही बिलख रहा तेरे बिलगने से
तकदीर के हम फ़कीर हैं बस तू मेरी जागीर
आखें तेरी सलाखें मेरी और हुस्न है ज़ंजीर
तुझसे से मेरी सुभ है तू ही आफताब है
तू हो नही सकती हकीकत तू ही ख्वाब है

2 comments:

Anonymous said...

Big fan of this guy and his poetic skills.....just exceptional

Morphi said...

great poem

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